
उत्तराखंड निकाय चुनाव 2025: निर्दलीय उम्मीदवारों से भाजपा और कांग्रेस को चुनौती, मुकाबला होगा दिलचस्प
उत्तराखंड में होने वाले आगामी निकाय चुनाव में इस बार भी निर्दलीय उम्मीदवार भाजपा और कांग्रेस के लिए सिरदर्द साबित हो सकते हैं। राज्य के विभिन्न नगर निगमों, नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में दिलचस्प मुकाबले होने की संभावना है, जहां पार्टी प्रत्याशियों को निर्दलीय उम्मीदवारों से कड़ी टक्कर मिल सकती है। इन चुनावों में 25 जनवरी को जब वोटों की गिनती होगी, तब यह स्पष्ट होगा कि जनता ने किसे चुना है, लेकिन अब तक दोनों प्रमुख दल—भा.ज.पा और कांग्रेस—अपने-अपने हिसाब से जीत के दावे कर रहे हैं।
उत्तराखंड के नगर निगमों जैसे रुड़की, श्रीनगर, ऋषिकेश के साथ-साथ कई नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में भी मुकाबला काफी रोमांचक होने जा रहा है। खासकर मसूरी, बाड़ाहाट उत्तरकाशी जैसी नगर पालिकाओं में निर्दलीय प्रत्याशी भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए चुनौती बनकर उभर रहे हैं। इन निकायों में निर्दलीय उम्मीदवारों ने दोनों प्रमुख दलों के नेताओं के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। कुमाऊं क्षेत्र के कई निकायों में भी यह मुकाबला काफी रोचक होने की उम्मीद है, जहां निर्दलीय प्रत्याशी मुख्य दलों के उम्मीदवारों के लिए बड़ा सिरदर्द बन सकते हैं।
2018 के चुनावों की बात करें तो उस वक्त 82 नगर निकायों में से 24 में निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी। इसके अलावा, दो नगर निगमों—कोटद्वार और ऋषिकेश—में निर्दलीय उम्मीदवार दूसरे स्थान पर थे। नगर पालिकाओं में भी स्थिति कुछ खास अलग नहीं थी। 39 नगर पालिकाओं में से 15 में निर्दलीय उम्मीदवारों ने दूसरा स्थान प्राप्त किया था। वहीं, 38 नगर पंचायतों में से आठ में निर्दलीय प्रत्याशी अध्यक्ष पद पर दूसरे स्थान पर रहे थे।
कुछ विशेष नगर निकायों जैसे पिरान कलियर, घनसाली, महुआ डाबरा हरिपुरा, देवप्रयाग, और टिहरी में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला नहीं था, बल्कि यहां पर हार-जीत निर्दलीय प्रत्याशियों के बीच हुई थी। इन परिणामों ने यह स्पष्ट कर दिया था कि राज्य में निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रभाव और वोट बैंक बहुत मजबूत हो सकता है, जो चुनावों के परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
इस बार भी हालात ऐसे ही हैं और यह देखना दिलचस्प होगा कि निर्दलीय उम्मीदवार फिर से भाजपा और कांग्रेस के बीच के मुकाबले को कैसे प्रभावित करते हैं। दोनों दलों के नेताओं को इस बार भी निर्दलीय उम्मीदवारों की चुनौती से निपटना होगा और यह मुकाबला चुनावी इतिहास में एक अहम मोड़ साबित हो सकता है।