
उत्तराखंड में जमीन खरीदने के नियमों में अब एक अहम बदलाव किया गया है, जिससे राज्य में भूमि खरीदने की प्रक्रिया और भी कठिन हो गई है। राज्य सरकार ने हाल ही में एक नया कानून लागू किया है, जिसके तहत राज्य में भूमि खरीदने के लिए अब शासन से अनुमति लेना अनिवार्य होगा।पहले, उत्तराखंड में जमीन खरीदने की प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल थी, लेकिन अब इस पर कड़े नियंत्रण के उपाय किए गए हैं। इस नए आदेश के तहत, राज्य सरकार से इजाजत न लेने तक कोई भी व्यक्ति या संस्था उत्तराखंड में भूमि का अधिग्रहण नहीं कर सकेगा। यह निर्णय उन भूमि खरीदारों के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है, जो राज्य में संपत्ति खरीदने का इच्छुक हैं, खासकर उन बाहरी व्यक्तियों के लिए जो राज्य से बाहर के हैं।राज्य सरकार का यह कदम प्रदेश की भूमि को बाहरी निवेशकों और कंपनियों से बचाने के लिए उठाया गया है। इसके साथ ही, यह कदम राज्य में जलवायु, पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए भी आवश्यक बताया गया है। अधिकारियों के अनुसार, यह कदम उन बाहरी लोगों को रोकने के लिए है जो बिना किसी सरकारी नियंत्रण के भूमि खरीदकर स्थानीय संसाधनों का दोहन कर सकते थे।इस नए कानून के तहत, भूमि खरीदने के इच्छुक लोगों को पहले जिला प्रशासन से अनुमति प्राप्त करनी होगी। इसके बाद, शासन की अनुमति मिलने पर ही वे भूमि खरीद सकते हैं। यह प्रक्रिया कागजी कार्यवाही और प्रशासनिक प्रक्रियाओं में समय लगने के कारण भूमि खरीदने की प्रक्रिया को काफी जटिल और समय-साध्य बना सकती है।विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से राज्य में निवेश की गति धीमी हो सकती है, क्योंकि बाहरी निवेशक और कंपनियां सरकारी मंजूरी की प्रक्रिया को लंबा और कठिन समझ सकती हैं। हालांकि, राज्य सरकार का यह तर्क है कि इस निर्णय से राज्य की पारंपरिक भूमि संरचना और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा होगी, और यह प्रदेश के स्थानीय निवासियों के हित में रहेगा।इस बदलाव से यह भी स्पष्ट हो रहा है कि प्रदेश में भविष्य में भूमि के अधिग्रहण और बिक्री पर अधिक निगरानी रखी जाएगी। इसके साथ ही, यह नया कानून उन लोगों के लिए भी एक चेतावनी है जो बिना सरकारी मंजूरी के भूमि खरीदने की कोशिश करेंगे।राज्य सरकार का कहना है कि इस नए नियम से राज्य की भूमि पर बाहरी प्रभाव कम होगा और प्रदेश के विकास के लिए स्थिर और नियंत्रित योजना बनाई जा सकेगी।