
लोक नृत्य की दुनिया में एक अमूल्य धरोहर माने जाने वाले पद्मश्री राम सहाय पांडे का 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने अपनी कला से न केवल भारतीय लोकनृत्य को सशक्त किया, बल्कि भारतीय संस्कृति को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई। राम सहाय पांडे का निधन भारतीय लोककला और संस्कृति के लिए एक अपूरणीय क्षति है।पांडे जी का जन्म उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था, और उन्होंने अपनी कला की यात्रा बहुत ही साधारण परिवेश से शुरू की थी। हालांकि, उनके भीतर छिपा हुआ लोक नृत्य का हुनर जल्द ही सामने आ गया, और उन्होंने अपने जीवन को लोक कला के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। पांडे जी ने न केवल लोक नृत्य की शिक्षा दी, बल्कि उसे संरक्षित और संवर्धित भी किया, जिससे आज के दौर में भी लोग भारतीय लोक नृत्य के अद्वितीय रूपों को जान पाते हैं।राम सहाय पांडे का नृत्य पर दृष्टिकोण बहुत ही व्यापक और समृद्ध था। उन्होंने लोकनृत्य की पारंपरिक शैलियों को जीवित रखने के साथ-साथ उनमें आधुनिकता का भी स्पर्श दिया, जिससे यह कला रूप और भी आकर्षक और प्रासंगिक हो गया। उनकी कला न केवल भारतीय जनता में समर्पण और प्रेम का प्रतीक बनी, बल्कि उन्होंने इसे विदेशों में भी प्रस्तुत किया, जहां उन्होंने भारतीय संस्कृति और लोक नृत्य की महत्ता को उजागर किया।उनके योगदान के लिए उन्हें 2001 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो कि भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। यह पुरस्कार न केवल उनके नृत्य कौशल की सराहना थी, बल्कि यह भारतीय संस्कृति को संरक्षण देने के उनके अथक प्रयासों की भी स्वीकृति थी।राम सहाय पांडे का निधन सांस्कृतिक और कलात्मक दुनिया के लिए एक भारी क्षति है। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी लोक नृत्य को एक नई पहचान दी, और उनकी कला हमेशा जीवित रहेगी। पांडे जी के निधन से न केवल उनके परिवार और प्रियजनों को दुख हुआ है, बल्कि पूरे देश ने एक महान कलाकार को खो दिया है। उनकी कला, नृत्य और योगदान भारतीय संस्कृति का अमूल्य हिस्सा बने रहेंगे। उनके निधन के साथ ही एक युग का अंत हो गया, लेकिन उनका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। उनकी कला से प्रेरित होकर आने वाली पीढ़ियां भारतीय लोकनृत्य को और भी ऊंचाइयों तक ले जाएंगी।