
नई दिल्ली | भारतीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने घोषणा की है कि वह पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए वेटिकन सिटी जाएंगी। पोप फ्रांसिस, जो ईसाई समुदाय के सर्वोच्च धार्मिक नेता थे, का निधन हाल ही में हुआ था और उनकी अंतिम विदाई का आयोजन 26 अप्रैल, 2025 को किया जाएगा। भारत सरकार ने भी इस मौके पर देशभर में राजकीय शोक की घोषणा की है और 26 अप्रैल को देश में शोक के रूप में मनाया जाएगा।राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के इस कदम को भारत-विदेशी संबंधों के प्रति उनकी गहरी श्रद्धा और पोप फ्रांसिस के योगदान को मान्यता देने के रूप में देखा जा रहा है। पोप फ्रांसिस ने अपने जीवन में धर्म, समाज और शांति के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए थे। उनके कार्यों ने पूरी दुनिया में मानवता के संदेश को फैलाया और उन्होंने शांति और सहनशीलता को बढ़ावा दिया। उनकी मृत्यु के बाद, विश्वभर में शोक की लहर दौड़ गई है, और भारत भी इस शोक में शामिल हो रहा है।भारत में राजकीय शोक की घोषणा के तहत, 26 अप्रैल को सभी सरकारी दफ्तरों में ध्वज आधा झुका रहेगा और सार्वजनिक आयोजन या समारोहों को स्थगित कर दिया जाएगा। यह दिन भारत के ईसाई समुदाय और भारत सरकार की ओर से पोप फ्रांसिस के प्रति सम्मान और श्रद्धा की एक अभिव्यक्ति है। भारत में पोप फ्रांसिस के योगदान को याद करते हुए कई चर्च और धार्मिक संस्थाओं ने शोक सभा का आयोजन किया है, जिसमें उनकी जीवनी और कार्यों पर चर्चा की जाएगी।राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु का वेटिकन सिटी जाना भारत और कैथोलिक चर्च के बीच मजबूत संबंधों का प्रतीक है। पोप फ्रांसिस ने हमेशा भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों का सम्मान किया था, और भारतीय ईसाई समुदाय के लिए उनके योगदान को भी भुलाया नहीं जा सकता। राष्ट्रपति मुर्मु ने अपने बयान में कहा, “पोप फ्रांसिस ने हमेशा मानवीय मूल्यों और धर्म के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी। उनका निधन न केवल ईसाई समुदाय के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा नुकसान है।”वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार में शामिल होने के दौरान, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु अपने संवेदनाओं को व्यक्त करेंगी और भारत की तरफ से श्रद्धांजलि अर्पित करेंगी। इसके साथ ही, वह वेटिकन सिटी में अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक नेताओं से भी मुलाकात करेंगी और भारत के लिए अच्छे संबंधों की कामना करेंगी।भारत सरकार ने इस अवसर पर कहा है कि राष्ट्रपति मुर्मु का यह कदम हमारे देश के धर्मनिरपेक्षता और विभिन्न धर्मों के बीच संवाद को बढ़ावा देने का संकेत है। भारतीय ईसाई समुदाय और भारतीय समाज के अन्य हिस्सों के लिए यह समय शोक और श्रद्धांजलि का है, क्योंकि पोप फ्रांसिस ने धर्म, समानता और शांति के सिद्धांतों का पालन किया।इस महत्वपूर्ण अवसर पर, दुनिया भर के अन्य देशों के नेताओं और धार्मिक हस्तियों की भी पोप फ्रांसिस के अंतिम संस्कार में भाग लेने की संभावना है। इससे यह भी स्पष्ट हो रहा है कि पोप फ्रांसिस का प्रभाव और योगदान पूरे विश्व में गहरा था। उनकी मृत्यु के बाद, शांति और मानवाधिकारों के प्रचार-प्रसार के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की सख्त जरूरत महसूस हो रही है।भारत में, जहां विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का संगम है, पोप फ्रांसिस का योगदान विशेष रूप से अहम था। उनके नेतृत्व में कैथोलिक चर्च ने दुनिया भर में धर्मनिरपेक्षता, सामूहिक भलाई और न्याय का प्रचार किया। उनका निधन निश्चित रूप से एक बड़े शून्य को छोड़ गया है, लेकिन उनके कार्यों और सिद्धांतों को हमेशा याद किया जाएगा।