
उत्तराखंड में शिक्षा विभाग द्वारा बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए शनिवार को “बैग लेस डे” (बस्ता मुक्त दिवस) मनाने के निर्देश दिए गए थे। इस पहल का उद्देश्य छात्रों को किताबों के भारी बोझ से कुछ समय के लिए राहत देना और उन्हें रचनात्मक गतिविधियों की ओर प्रेरित करना है। राज्य के कई स्कूलों ने इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए शनिवार को बच्चों के लिए बिना बस्ते के स्कूल आने की व्यवस्था की।कुछ स्कूलों में इस निर्णय को पूरे जोश के साथ अपनाया गया और इसके परिणामस्वरूप बेहद प्यारी और प्रेरणादायक तस्वीरें सामने आईं। बच्चे हल्के कदमों से, मुस्कुराते चेहरों के साथ स्कूल पहुंचे, जहाँ परंपरागत कक्षाओं की जगह खेल, कला, नृत्य, कहानी लेखन, संगीत और विज्ञान के रोचक प्रयोगों जैसी गतिविधियों का आयोजन किया गया।
बच्चों में दिखा उत्साह
स्कूलों में बैग मुक्त दिवस के चलते बच्चों में खासा उत्साह देखने को मिला। आमतौर पर भारी बस्तों के कारण थके-थके नजर आने वाले छात्र, शनिवार को बेहद चहकते और ऊर्जा से भरे हुए दिखे। शिक्षकों ने भी इस अवसर को बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए रचनात्मक तरीके से उपयोग किया। कुछ विद्यालयों में योग सत्र, पर्यावरण जागरूकता कार्यक्रम और टीम बिल्डिंग गेम्स आयोजित किए गए।
अभिभावकों ने जताई खुशी
अभिभावकों ने भी इस पहल का स्वागत किया और इसे बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए एक सकारात्मक कदम बताया। कई अभिभावकों ने कहा कि सप्ताह में एक दिन बस्ते से आज़ादी बच्चों के मानसिक तनाव को कम कर सकती है और पढ़ाई के प्रति उनकी रुचि भी बढ़ा सकती है।
कुछ जगहों पर आंशिक क्रियान्वयन
हालांकि, कुछ स्कूलों में इस निर्देश का आंशिक क्रियान्वयन देखा गया। संसाधनों की कमी, पूर्वनिर्धारित पाठ्यक्रम दबाव और प्रशासनिक कारणों के चलते कुछ संस्थान पूरी तरह से बैग लेस डे को लागू नहीं कर पाए। फिर भी, जहां भी इसे अपनाया गया, वहां बच्चों और शिक्षकों दोनों ने इसे बेहद सकारात्मक अनुभव बताया।
शिक्षा विभाग की ओर से प्रशंसा
शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने उन स्कूलों की सराहना की जिन्होंने इस पहल को सफलतापूर्वक लागू किया। साथ ही अन्य विद्यालयों से भी अपेक्षा की जा रही है कि वे इस दिशा में जल्द कदम उठाएंगे ताकि बच्चों को एक दिन का मानसिक विश्राम और रचनात्मक सीखने का अवसर मिल सके।
भविष्य की योजना
शिक्षा विभाग का लक्ष्य है कि आने वाले समय में “बैग लेस डे” को और अधिक प्रभावी और व्यापक रूप से लागू किया जाए। इसके तहत स्कूलों को साप्ताहिक कार्यक्रम तैयार करने, रचनात्मक कक्षाओं की योजना बनाने और छात्रों की प्रतिभाओं को उभारने के लिए विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। “बैग लेस डे” की यह पहल उत्तराखंड के स्कूली शिक्षा तंत्र में एक ताज़गी भरा बदलाव लेकर आई है। बच्चों के मुस्कुराते चेहरे और उनकी रचनात्मक ऊर्जा इस बात का प्रमाण हैं कि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि व्यक्तित्व विकास और जीवन कौशल को भी समान रूप से बढ़ावा देना चाहिए।