
पश्चिम बंगाल की राजनीति एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में है, और इस बार वजह बने हैं भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेता और सांसद दिलीप घोष। हाल ही में दीघा के जगन्नाथ मंदिर में उनकी तृणमूल कांग्रेस (TMC) सुप्रीमो और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से हुई मुलाकात ने बंगाल की सियासी फिज़ा में नई हलचल पैदा कर दी है। मंदिर के पवित्र परिसर में हुई इस ‘सौजन्य मुलाकात’ को लेकर अब राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं। सवाल उठ रहा है — क्या दिलीप घोष TMC में वापसी की तैयारी में हैं? घटना का सिलसिला तब शुरू हुआ जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दीघा प्रवास के दौरान जगन्नाथ मंदिर में दर्शन करने पहुंचीं। उसी समय वहां पहले से मौजूद बीजेपी सांसद दिलीप घोष भी मंदिर में मौजूद थे। दोनों नेताओं के बीच मंदिर परिसर में संक्षिप्त बातचीत हुई, जो कैमरों में कैद हो गई। यहीं से अटकलों का दौर शुरू हो गया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बंगाल की राजनीति में कोई मुलाकात केवल ‘सौजन्य’ नहीं होती, खासकर जब वह दो विरोधी दलों के दिग्गज नेताओं के बीच हो। हालांकि दिलीप घोष ने इस मुलाकात को तूल न देने की बात कही है। उन्होंने मीडिया से बातचीत में स्पष्ट किया कि मंदिर में हुई यह भेंट पूरी तरह से संयोग था और इसका कोई राजनीतिक मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए। घोष ने कहा, “मैं मंदिर में पहले से मौजूद था, मुख्यमंत्री आईं, तो मैंने नमस्कार किया। यह बंगाली संस्कृति और शिष्टाचार का हिस्सा है। इसमें राजनीति ढूंढना निरर्थक है।” लेकिन BJP के अंदर इस मुलाकात को लेकर गहरी नाराजगी दिखाई दे रही है। पार्टी के कुछ नेताओं ने इसे ‘पार्टी अनुशासन के खिलाफ’ बताया है। बीजेपी के कुछ सांसदों और पदाधिकारियों ने तो सोशल मीडिया पर भी इस पर अप्रसन्नता जताई है। बंगाल BJP में अंदरूनी खींचतान और गुटबाज़ी की खबरें पहले से ही सुर्खियों में रही हैं, ऐसे में इस मुलाकात ने उन फाटलों को और उजागर कर दिया है। दिलीप घोष का राजनीतिक कद बंगाल में काफी अहम रहा है। वे राज्य बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं और पार्टी को ज़मीन से खड़ा करने में उनकी भूमिका मानी जाती है। लेकिन हाल के दिनों में वह पार्टी नेतृत्व से अलग-थलग दिखे हैं। उनके बयान कई बार पार्टी लाइन से अलग रहे हैं और उन्होंने आंतरिक फैसलों पर भी सवाल उठाए हैं। ऐसे में अब उनकी ममता बनर्जी से मुलाकात को महज़ इत्तफाक मानना कुछ मुश्किल लग रहा है।उधर, TMC की ओर से इस मुलाकात पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं ने मुस्कुराते हुए कहा कि “राजनीति में कुछ भी नामुमकिन नहीं होता।” यह बयान अपने आप में संकेत देता है कि दिलीप घोष को लेकर पार्टी के दरवाजे पूरी तरह बंद नहीं हैं।राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो यदि दिलीप घोष TMC में शामिल होते हैं, तो यह बंगाल बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका होगा। खासकर ऐसे समय में जब पार्टी राज्य में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है। दूसरी ओर, TMC को इससे एक अनुभवी और जमीनी नेता मिल सकता है जो राज्य की राजनीति की नब्ज़ को भली-भांति समझता है।फिलहाल, दिलीप घोष के TMC में शामिल होने को लेकर कुछ भी आधिकारिक नहीं है, लेकिन जिस तरह से घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है, उससे एक बात तो साफ है कि बंगाल की राजनीति में आने वाले दिनों में और भी बड़े उलटफेर देखने को मिल सकते हैं।