जौलीग्रांट एयरपोर्ट विस्तार: पेड़ों की कटाई और परिवारों के विस्थापन पर चिंता

देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार की प्रक्रिया अब तेज़ी पकड़ रही है, लेकिन इस विकास परियोजना की कीमत पर्यावरण और स्थानीय निवासियों को चुकानी पड़ेगी। प्रस्तावित विस्तार क्षेत्र में आने वाले 6000 से अधिक पेड़ों की कटाई की तैयारी की जा रही है, वहीं करीब 90 परिवारों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ेगा।एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) के इस महत्त्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के तहत रनवे और टर्मिनल क्षेत्र का विस्तार किया जाएगा ताकि विमान संचालन की आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें। इससे हवाई यातायात को और अधिक गति मिलेगी, साथ ही अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के संचालन की भी संभावनाएं बनेंगी। लेकिन इस योजना का एक बड़ा प्रभाव स्थानीय जैवविविधता और सामाजिक संरचना पर पड़ने जा रहा है।

विस्तार की जद में आएगा जंगल और आवासीय क्षेत्र
जानकारी के मुताबिक, एयरपोर्ट विस्तार के लिए चिन्हित भूमि में हरियाली से भरा वन क्षेत्र, कुछ खेती योग्य जमीन, और आवासीय बस्तियां शामिल हैं। यह क्षेत्र न केवल बड़ी संख्या में पेड़ों से आच्छादित है, बल्कि यहाँ कई वर्षों से स्थानीय लोग बसे हुए हैं, जिनकी आजीविका और जीवन इसी जमीन से जुड़ी हुई है। वन विभाग द्वारा जारी प्रारंभिक आकलन में बताया गया है कि 6,000 से अधिक पेड़ों की बलि देनी पड़ेगी। इन पेड़ों में साल, शीशम, देवदार, कचनार और अन्य स्थानीय प्रजातियां शामिल हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।

90 परिवारों के पुनर्वास की चुनौती
विस्तार योजना के चलते प्रभावित होने वाले लगभग 90 परिवारों को स्थानांतरित किया जाएगा। प्रशासन की ओर से पुनर्वास की प्रक्रिया की रूपरेखा तैयार की जा रही है, लेकिन स्थानीय लोगों ने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि उन्हें न केवल उनके घरों से बेदखल किया जा रहा है, बल्कि उनकी जमीन, रोजगार और जीवनशैली पर भी गहरा असर पड़ेगा। कुछ परिवारों ने मांग की है कि उन्हें उचित मुआवजा और वैकल्पिक आवास सुनिश्चित किया जाए, साथ ही उनके बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का भी ध्यान रखा जाए।

पर्यावरणविदों ने जताई आपत्ति
पर्यावरण संरक्षण से जुड़े विशेषज्ञों और संगठनों ने इस विस्तार परियोजना पर गंभीर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इस क्षेत्र में इतने बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई से स्थानीय जलवायु, भू-जल स्तर और वन्यजीवों की आवाजाही पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। साथ ही यह भी आशंका जताई जा रही है कि अगर उचित पुनर्वनीकरण योजना नहीं अपनाई गई तो यह भविष्य में पर्यावरणीय संकट को जन्म दे सकता है।

सरकार का पक्ष
उत्तराखंड सरकार और एयरपोर्ट अथॉरिटी का कहना है कि यह परियोजना राज्य के विकास और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है। अधिकारियों के अनुसार, पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए “प्लांटेशन-फॉर-कटिंग” की नीति अपनाई जाएगी, जिसके तहत प्रत्येक कटे हुए पेड़ के बदले तीन से पांच नए पेड़ लगाए जाएंगे। वहीं पुनर्वास के लिए प्रभावित परिवारों को वैकल्पिक ज़मीन, मकान और मुआवजा प्रदान करने का आश्वासन दिया गया है। देहरादून एयरपोर्ट का विस्तार राज्य के लिए एक बड़ी उपलब्धि हो सकता है, लेकिन इसके साथ-साथ सरकार और प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय से समझौता न हो। पेड़ काटने से पहले ठोस पुनर्वनीकरण योजना, और परिवारों के पुनर्वास से पहले उनके हितों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है, ताकि विकास की उड़ान सच्चे मायनों में संतुलित और समावेशी हो सके।

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