
अंकिता भंडारी हत्याकांड के मुख्य आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बावजूद उनके चेहरे पर कोई पछतावा या निष्ठुरता के लिए कोई लक्षण नजर नहीं आया। न्यायालय में सुनवाई के दौरान और बाहर आने पर भी उनकी शारीरिक भाषा और व्यवहार से साफ तौर पर यह पता चलता रहा कि उन्हें अपने अपराध के लिए कोई खेद नहीं है। खासतौर पर सौरभ भास्कर, जो कि इस कांड के मुख्य आरोपीयों में से एक है, ने न्यायालय परिसर से बाहर निकलते समय पुलिस वाहन में बैठने से पहले आम लोगों की ओर हाथ हिलाकर अभिवादन किया और मुस्कुराता भी दिखा। इस तरह का आचरण दर्शाता है कि वह अपने किए पर किसी प्रकार का अफसोस या शर्म महसूस नहीं कर रहा है।
यह घटना न्यायालय परिसर को लेकर एक गंभीर सवाल उठाती है कि क्या दोषियों में अपराध की गंभीरता को लेकर कोई संवेदना या पछतावा होता है। इस हत्याकांड ने समाज को झकझोर कर रख दिया था और इस कड़ी में सजा मिलने के बाद भी उनका ऐसा रवैया लोगों के लिए निराशाजनक है।
अंकिता भंडारी हत्याकांड के आरोपियों में मुख्य रूप से पुलकित आर्य, सौरभ भास्कर और एक अन्य साथी शामिल थे। शुक्रवार सुबह पुलकित आर्य को अल्मोड़ा जेल से कोटद्वार स्थित न्यायालय परिसर भारी पुलिस सुरक्षा के बीच लाया गया। इसके कुछ देर बाद टिहरी जेल में बंद सौरभ भास्कर को भी कठोर सुरक्षा के बीच न्यायालय में पेश किया गया। दोनों आरोपियों के साथ उनके साथी को भी दोषी माना गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
अंकिता भंडारी की हत्या की जांच और सजा की प्रक्रिया ने पूरे प्रदेश को एक साथ बांध दिया था। इस मामले में पुलिस और न्यायपालिका की सक्रियता और तेज़ कदमों ने न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, सजा के बावजूद दोषियों का आत्मसमर्पण न कर पाना और उनके रवैये से यह सवाल उठता है कि क्या ऐसी घटनाओं में अपराधियों के मनोविज्ञान को समझने और सुधारात्मक कदम उठाने की भी आवश्यकता है।
इस केस के दौरान, समाज ने भी इस मुद्दे को लेकर जागरूकता बढ़ाई और महिलाओं की सुरक्षा के लिए आवाज उठाई। अंकिता की हत्या ने हमें यह सिखाया कि हमें महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को रोकने के लिए सामाजिक और कानूनी तौर पर और भी सख्ती करनी होगी। दोषियों को सजा मिलना न्याय की पहली सीढ़ी है, लेकिन ऐसे मामलों में सही पुनर्वास और अपराध नियंत्रण की नीतियों पर भी विचार करना जरूरी है।
अंततः, अंकिता भंडारी के हत्यारों के चेहरे पर न पड़ने वाला पछतावा और उनका घमंडी रवैया न्याय व्यवस्था के सामने एक बड़ी चुनौती है। यह समाज को एक बार फिर सोचने पर मजबूर करता है कि केवल सजा देना ही काफी नहीं है, बल्कि अपराधों के कारणों को समझ कर उनका प्रभावी समाधान निकालना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।