
उत्तराखंड राज्य, जो हर साल गर्मियों के मौसम में जंगलों की भीषण आग से जूझता रहा है, इस बार राहत की स्थिति में दिखाई दे रहा है। वनाग्नि (जंगल की आग) की दृष्टि से अब तक का फायर सीजन अपेक्षाकृत शांत और नियंत्रण में रहा है। यदि मौजूदा स्थिति आगे भी बनी रहती है, तो यह कोविड काल के बाद का सबसे कम वनाग्नि वाला साल हो सकता है।
अब तक केवल 204 घटनाएं, नुकसान सीमित
15 फरवरी से अब तक प्रदेश में 204 वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें लगभग 226 हेक्टेयर क्षेत्रफल में वन संपदा को नुकसान पहुंचा है। यह आँकड़ा पिछले साल की तुलना में बहुत ही कम है। वर्ष 2024 के फायर सीजन में 1276 आग की घटनाएं हुई थीं, जिसमें 1773 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र प्रभावित हुआ था। इतना ही नहीं, कई जगहों पर आग की चपेट में आकर लोगों की मृत्यु भी हुई थी, और कई वन अधिकारियों को लापरवाही के चलते निलंबित या अटैच किया गया था।
कोविड काल 2020 के बाद की सबसे कम घटनाएं संभव
यदि हम 2014 से लेकर अब तक के आंकड़ों को देखें, तो सबसे कम वनाग्नि की घटनाएं कोविड काल 2020 में हुई थीं। उस वर्ष केवल 135 घटनाएं दर्ज की गई थीं और 173 हेक्टेयर क्षेत्रफल को नुकसान हुआ था। यह स्थिति उस वक्त पूरे देश में लागू लॉकडाउन के कारण बनी थी, जिससे मानवीय गतिविधियां और जंगलों में आवाजाही लगभग शून्य हो गई थी।
सतर्कता और समय से उठाए गए कदम लाए असर
इस वर्ष जंगल की आग में कमी का एक बड़ा कारण समय-समय पर हुई बारिश को माना जा रहा है, जिसने जंगलों को शुष्क होने से बचाया। इसके साथ ही वन विभाग द्वारा पिछले साल की गंभीर घटनाओं को ध्यान में रखते हुए समय से की गई तैयारियों ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अधिकारियों द्वारा संवेदनशील क्षेत्रों की मैपिंग, अलर्ट जारी करना, स्थानीय समुदायों को जागरूक करना, और फायर वॉचर्स की तैनाती जैसे प्राकृतिक व प्रशासनिक उपायों का सम्मिलित प्रभाव दिखाई दे रहा है।
आगे भी सतर्कता जरूरी
हालांकि वर्तमान स्थिति आशाजनक है, लेकिन फायर सीजन अभी समाप्त नहीं हुआ है। जून के पहले सप्ताह तक मौसम में गर्मी और सूखे की स्थिति बनी रह सकती है, ऐसे में वन विभाग व स्थानीय प्रशासन को जारी सतर्कता बनाए रखनी होगी। जंगलों की जैव विविधता, वन्य जीवों और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए यह एक अहम समय है।
यह सकारात्मक संकेत न केवल उत्तराखंड के लिए राहत का कारण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि यदि समय रहते योजनाबद्ध प्रयास किए जाएं, तो प्राकृतिक आपदाओं पर भी नियंत्रण पाया जा सकता है।