“दिल्ली में साथ, दून में तकरार: हरक-हरीश की सियासी चालें फिर चर्चा में”

उत्तराखंड की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के बीच 2016 की घटनाओं को लेकर जुबानी जंग तेज हो गई है। दोनों नेता एक-दूसरे पर सीधे शब्दों में निशाना साध रहे हैं, हालांकि दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की अध्यक्षता में आयोजित प्रदेश कांग्रेस नेताओं की बैठक में दोनों नेता एक साथ दिखाई दिए।

2016 से 2022 तक चला आ रहा टकराव फिर सतह पर
पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत ने सोशल मीडिया पर वायरल बयान में सीधे-सीधे कहा कि 2022 में अगर हरीश रावत चुनाव न लड़ते तो कांग्रेस सत्ता में होती। उन्होंने कहा कि हरीश रावत ने केवल लालकुआं और हरिद्वार ग्रामीण जैसे अपने विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार किया, लेकिन अन्य सीटों पर उन्होंने कोई मेहनत नहीं की।

हरक सिंह ने यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने हरीश रावत को फोन कर सलाह दी थी कि “मेरे तेरे के चक्कर में मत पड़ो, जो जीतने लायक है उसे टिकट दो”, लेकिन उनकी सलाह पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “राजनीति में एक ही फंडा होता है—जो जीता वही सिकंदर।”

“परिवार के लोग ही अपने नहीं होते, राजनीति में तो बात ही छोड़ो”
हरक सिंह का यह बयान भी काफी चर्चा में है, जिसमें उन्होंने कहा, “परिवार के लोग ही अपने नहीं होते हैं, राजनीति में तो मेरा-तेरा दूर की बात है।” उन्होंने साफ किया कि 2022 में वह अपनी मर्जी से कांग्रेस में नहीं लौटे थे, बल्कि परिस्थितियां और अतीत की गलतियों ने उन्हें यह निर्णय लेने को मजबूर किया।

हरीश रावत का करारा पलटवार
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी हरक सिंह के आरोपों का जवाब देने में देर नहीं लगाई। उन्होंने कहा कि यदि उन्होंने पहल न की होती, तो हरक सिंह कांग्रेस में वापस नहीं आते। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने हरक सिंह के आग्रह का सम्मान किया और पार्टी में उनकी वापसी को सहमति दी।

हरीश रावत ने चुनौती देते हुए कहा, “हरक सिंह एक सीट जीतकर अपनी क्षमता साबित करें, जिससे 2016 की कटुता मिट सके।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हरक सिंह लोकसभा चुनाव में भी कहीं नजर नहीं आए।

“2016 में लोकतंत्र और उत्तराखंडियत की हत्या हुई”
हरीश रावत ने 2016 की राजनीतिक घटना को लोकतंत्र और उत्तराखंड की अस्मिता पर हमला बताया। उन्होंने कहा कि उस समय की साजिशों और विश्वासघात ने भाजपा को सत्ता में आने का अवसर दिया। “2016 के घाव आज भी मेरे सीने में हैं,” उन्होंने भावुक स्वर में कहा।

उन्होंने अपनी ‘न्याय यात्रा’ को भाजपा के “झूठ, लूट और अन्याय” के खिलाफ जनजागरण की मुहिम बताया और कहा कि भाजपा ने 2017 और 2022 में जो सत्ता हासिल की, वह सिर्फ झूठे वादों और प्रलोभनों के सहारे पाई गई।

एक साथ मंच पर, लेकिन दिलों में दरार गहरी
दिलचस्प बात यह रही कि जिस समय यह बयानबाजी उत्तराखंड में सुर्खियां बटोर रही थी, उसी वक्त हरक सिंह रावत और हरीश रावत दिल्ली में कांग्रेस नेतृत्व की महत्वपूर्ण बैठक में एक साथ बैठे नजर आए। यह दृश्य राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी आश्चर्य का विषय रहा कि मंच पर एकजुट दिखने वाले नेता पर्दे के पीछे कितने खींचतान में उलझे हैं। उत्तराखंड कांग्रेस में यह अंदरूनी संघर्ष केवल व्यक्तिगत मतभेद नहीं बल्कि रणनीतिक असहमति का संकेत भी है। पार्टी के सामने चुनौती अब न सिर्फ विपक्ष से बल्कि भीतर की खींचतान से भी निपटने की है। अगर समय रहते इन दरारों को न पाटा गया, तो यह 2027 की राह में भी रोड़े अटका सकती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Notice: ob_end_flush(): failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home1/theindi2/public_html/wp-includes/functions.php on line 5464