चारधाम यात्रा: कठिन रास्तों को मात दे रही है श्रद्धा की ताकत, रोज़ उमड़ रही आस्था की गंगा

उत्तराखंड में मानसून की दस्तक के साथ चारधाम यात्रा में कठिनाइयाँ जरूर बढ़ी हैं, लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था हर चुनौती पर भारी पड़ रही है। भारी बारिश, भूस्खलन, और चट्टान गिरने जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बीच भी चारधाम यात्रा की रफ्तार थम नहीं रही है। प्रतिदिन 50,000 से अधिक श्रद्धालु चारधामों के साथ-साथ हेमकुंड साहिब के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं।यात्रा के दो महीने 30 जून को पूरे हो जाएंगे और अब तक कुल 35 लाख से अधिक श्रद्धालु चारधामों के दर्शन कर चुके हैं। यह आंकड़ा तीर्थ यात्रा की भव्यता और आस्था की ताकत को दर्शाता है।जून के आरंभ में चारधाम यात्रा चरम पर थी। उस समय प्रतिदिन 70 हजार से अधिक श्रद्धालु दर्शन कर रहे थे, लेकिन मानसून के सक्रिय होते ही पहाड़ों में कई जगहों पर भूस्खलन और चट्टानों के गिरने की घटनाएं सामने आईं, जिससे यात्रा में अवरोध उत्पन्न हुए। इसके चलते केदारनाथ और हेमकुंड साहिब के लिए हेली सेवा को भी अस्थायी रूप से रोक दिया गया है।हालांकि इन चुनौतियों के बावजूद भी श्रद्धालु पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। बीते कुछ दिनों में भी प्रतिदिन 50,000 श्रद्धालु चारधाम यात्रा पर पहुंच रहे हैं, जो कि एक बड़ा आंकड़ा है और यात्रा के प्रति उनकी श्रद्धा और समर्पण को दर्शाता है।

पर्यटन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, 24 जून 2025 तक कुल 35 लाख श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं:

🔹 केदारनाथ – 12.41 लाख
🔹 बदरीनाथ – 9.83 लाख
🔹 गंगोत्री – 5.47 लाख
🔹 यमुनोत्री – 5.38 लाख
🔹 हेमकुंड साहिब – 1.61 लाख

वहीं, चारधाम यात्रा के लिए अब तक 46 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने पंजीकरण करवा लिया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आने वाले दिनों में यात्रा और भी भव्य होगी।

पंजीकरण के आँकड़े:

🔸 केदारनाथ – 14,88,663
🔸 बदरीनाथ – 13,79,835
🔸 गंगोत्री – 8,02,411
🔸 यमुनोत्री – 7,33,681
🔸 हेमकुंड साहिब – 1,88,430

चारधाम यात्रा के लिए हरिद्वार, ऋषिकेश, हरबर्टपुर और विकासनगर में बनाए गए पंजीकरण केंद्रों में प्रतिदिन 8 से 10 हजार श्रद्धालुओं का ऑफलाइन पंजीकरण हो रहा है। पंजीकरण के नोडल अधिकारी योगेंद्र गंगवार ने बताया कि यात्रा पूरी तरह से सुचारू रूप से संचालित हो रही है, और सभी व्यवस्थाएं लगातार मजबूत की जा रही हैं।चारधाम यात्रा सिर्फ एक तीर्थ नहीं, बल्कि आस्था, साहस और सामूहिक समर्पण का प्रतीक बन चुकी है। जहां एक ओर पहाड़ों की प्राकृतिक चुनौतियाँ हैं, वहीं दूसरी ओर श्रद्धालुओं की निष्ठा किसी फौलाद से कम नहीं।

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