
उत्तराखंड के नैनीताल जनपद स्थित कोटाबाग क्षेत्र से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। भाजपा नेता विशन नगरकोटी के 31 वर्षीय पुत्र कमल नगरकोटी ने शुक्रवार को कथित रूप से पुलिस अभद्रता और थप्पड़ से आहत होकर ज़हर खाकर अपनी जान दे दी। इस घटना से इलाके में शोक और आक्रोश दोनों का माहौल है।कमल नगरकोटी भाजपा के जिला कार्यकारिणी सदस्य और बीडीसी रहे विशन नगरकोटी के पुत्र थे। उनका परिवार सयात गांव में रहता है। कमल अपने पिता के साथ ठेकेदारी का काम करता था और हाल ही में, लगभग एक साल पहले, उसकी शादी हुई थी। उसका बड़ा भाई सेना में कार्यरत है।घटना की जानकारी के अनुसार, शुक्रवार दोपहर को कमल बाइक से कहीं जा रहा था, तभी कोटाबाग क्षेत्र की स्थानीय पुलिस चौकी के एक कांस्टेबल ने उसे रोककर चेकिंग की। परिजनों का आरोप है कि चेकिंग के दौरान सिपाही ने उसे थप्पड़ मारा और अभद्रता की। यह घटना कमल के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाली थी और वह मानसिक रूप से बहुत आहत हो गया।इसके कुछ समय बाद, कमल ने कोटाबाग बाजार में जाकर ज़हर खा लिया। जब घरवालों को इसकी जानकारी मिली, तो उसे तुरंत बेस अस्पताल हल्द्वानी ले जाया गया, लेकिन हालत गंभीर होने के कारण उसे सुशीला तिवारी अस्पताल रेफर किया गया। दुर्भाग्यवश, रात करीब 10 बजे अस्पताल पहुंचने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई। फिलहाल शव को मोर्चरी में रखवाया गया है।इस घटना ने क्षेत्र में सनसनी फैला दी है। कमल ने ज़हर खाने से पहले अपनी मां को फोन पर पूरी घटना की जानकारी दी थी, जिसमें उसने पुलिस की अभद्रता का उल्लेख किया। इसके आधार पर परिवार का कहना है कि यह आत्महत्या सीधे तौर पर मानसिक उत्पीड़न और अपमानजनक व्यवहार का परिणाम है।कमल के पिता विशन नगरकोटी ने इस मामले में दोषी कांस्टेबल के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए तहरीर देने की बात कही है। उन्होंने कहा कि एक जिम्मेदार नागरिक और बेटे के पिता के रूप में वे न्याय चाहते हैं।वहीं दूसरी ओर, कालाढूंगी थाना प्रभारी विजय मेहता का कहना है कि युवक के ज़हर खाने की जानकारी प्राप्त हुई है, लेकिन पुलिस द्वारा मारपीट या अभद्रता के आरोप निराधार हैं। उनका कहना है कि प्रारंभिक जानकारी के अनुसार कमल नशे का आदी था, और यह घटना उसकी मानसिक स्थिति से जुड़ी हो सकती है।अब इस घटना ने राजनीतिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर परिजनों का आरोप है कि पुलिस का बर्ताव अपमानजनक था, जबकि दूसरी ओर पुलिस अपनी सफाई में बात को नकार रही है। मामले की निष्पक्ष जांच की मांग जोर पकड़ रही है, ताकि सच्चाई सामने आ सके और यदि कोई दोषी है तो उस पर सख्त कार्रवाई हो।इस त्रासदी ने एक बार फिर से पुलिस और आमजन के संबंधों की संवेदनशीलता को उजागर किया है। सवाल यह है कि क्या आम नागरिक का आत्मसम्मान इतना कमजोर हो गया है कि एक थप्पड़ उसे आत्महत्या की ओर धकेल दे? और क्या पुलिस को जनता के साथ संवाद के दौरान और अधिक संवेदनशील बनने की आवश्यकता नहीं है?